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स्वामी विवेकानंद का शिकागों भाषण vivekananda speech in Chicago

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Published 4 Feb 2018

भूल सुधार वीडियो में 1896 और 1886 बॉस गया जबकि 11 sep 1893 में यह सम्मेलन हुआ और 27 sep 1893 को खत्म हुआ। Follow me on Twitter Check out j p gupta(youtuber)FUNNY WORLD BIOGRAPHY (@jpguptadmrc): https://twitter.com/jpguptadmrc?s=09 कोलंबियन प्रदर्शनी के दौरान शिकागो के कला प्रशिक्षण केंद्र में 11 septembar सं 1883 में विश्व धर्म सम्मेलन की शुरुआत हुई। जिसमे स्वामी विवेकानंद को भारतीय और हिन्दुधर्म पे बोलना था।स्वामी जी मन में माँ स्वरस्वती की आराधन के साथ अपने भाषण की सुरुआत करते हुए बोलर बोले। sisters and brothers ऑफ अमेरिका।यानी अमेरिका के बहनों और भाईओं।इतना बोलने के साथ ही पूरा सभा तालियो की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।सभा मे मौजूद सभी 7000 श्रोताओं खड़े हो गए।2 मिनट तक लगातार उसी तरह तालियां बजती रही। स्वामी जी ने भारतीय दर्शन और हिंदू धर्म को सबसे प्राचीन धर्म के रूप में वहां पर प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया हिन्दू धर्म हमे सहंसक्ति और सरभौमिक स्वीकारिता यानी universal acceptance सिखाती है।स्वामी विवेकानंद जी अपने भाषण के दौरान शिव महिमा स्त्रोत तम की भी चर्चा की। जिस प्रकार संसार की सभी नदियां अलग-अलग रास्ते से होते हुए अंत में विशाल सागर में मिल जाती है उसी प्रकार हमें पाने के लिए अलग-अलग धर्म या मजहब के इंसान अलग अलग रास्ते अपनाते हैं।परंतु मैं एक ही हु।और सारे रास्ते अंत मे मेरे में ही मर आकर मिलते हैं। मेरी खोज में कोई भी मनुष्य चाहे कोई भी रास्ते से मेरी ओर आएगा मैं उसके पास पहुंचूंगा। स्वामी जी का यह छोटा सा ही भाषण था परंतु यह भाषण उस सभा का आत्मा बन गई।सभा के सांसद john hennry barrows ने कहा कि एक पीला वस्त्र धारी भारत का बिच्छू ने अपने भाषण से इस कदर अपने धर्म से लोगों को प्रभावित किया कि हम सब यह मान गए कि भारत बर्ष धर्म की जननी है। विवेकानंद ने विदेशी मीडिया का भी ध्यान अपनी ओर खींचा।विदेशी मीडिया में इन्हें साइक्लोनिक मोंक ऑफ इंडिया का खिताब दिया। The newyork क्रिटिक न्यूज़पेपर ने कहा कि स्वामी विवेकानंद एक दैवीय बकता है।पीली वस्त्र पहने इस भिछू का चेहरा गुणो से ओज प्रकट कर रहा थ जो हमे अपने धर्म की महानता के बारे में बताया। द न्यूयॉर्क हेराल्ड अख़बार ने कहा कि स्वामीजी धर्म संसद के सबसे बड़े चहरे थे।उनको सुनने के बाद ऐसा अनुभव हो रहा था कि हम लोग मूर्ख हैं जो अपने बच्चों को राष्ट्र के बारे में सिखाने के लिए मिशनरियों में भेजते हैं।

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